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नन्द और मौर्य सम्राट् । [९९ उन्होंने मगधादि देशोंमें धर्मप्रचार किया और आखिर विपुलाचल पर्वतपरसे वह भी निर्वाण पधारे ।
एकदा विद्युच्चर अपने पांचसौ साथियों सहित मथुराके उद्यानमें आ विराजे; जहां उन पर घोर उपसर्ग हुमा । सब मुनियोंने समतापूर्वक समाधिमरण किया । उनकी पवित्र स्मृति में वहां पांचसौ स्तूप निर्माण किये गये थे, जो अकबर बादशाह के समय तक वहां विद्यमान थे।
नन्द और मौर्य सम्राट् । शिशु नागवंशके प्रतापी राजाओंके पश्चात् मगध साम्राज्यके
अधिकारी नन्दवंशके राजा हुये थे। उस नन्द-राजा। .समय मगधका शासक ही भारत वर्षका
प्रमुख और अग्रगण्य नृप मथवा सम्राट समझा जाता था। इसी कारण मगधका अधिकार पाते ही नन्दराजा भी भारतके प्रधान शासक समझे जाने लगे। यहां तक कि विदेशीयूनानी लेखकोंने भी नन्दोंकी प्रधानता और प्रसिद्धिका उल्लेख किया है। इन नन्दोंमें सम्राट् नन्दवर्द्धन और महापद्म मुख्य थे। नंदवर्द्धन्ने एक भारतव्यापी दिग्विजय की थी, जिसमें उसने दक्षिण भारतको भी विजय किया था।
दक्षिण भारतके एक शिलालेखसे यह स्पष्ट है कि नन्दरा
१-जम्बू० पृ. १०-११. मथुरा में विद्युच्चरकी स्मृतिमें स्तूपोंका होना इस कथानककी सत्यताका प्रमाण है। २-एम., पृष्ठ १३९ ।
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