Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 97
________________ ७८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | जब भगवान् अरिष्टनेमि केवलज्ञानी हुये, लब वह उनकी वन्दना करने आये। उनके साथ अनेक यादवगणने तीर्थकर अरिष्टनेमिका शिष्यत्व ग्रहण किया था। उपरान्त श्री कृष्णने दिग्विजय के लिये प्रस्थान किया। और अपने अतुल पौरुषसे सारे दक्षिणभारत क्षेत्रको विजय किया । इसके पश्चात् कृष्णने आठ वर्षतक खूब भोग भोगे और अन्य राजाओं को वश किया। उपरान्त उन्होंने 'कोटिशिला ' नेके लिये गमन किया । और उसे उठाकर अपने शारीरिक - बलका परिचय जगतको करा दिया। यहां से वह द्वारिका आये - और वहां उनका राज्याभिषेक हुआ । अब कृष्ण राजराजेश्वर बनकर नीतिपूर्वक राज्य करते रहे । उधर हरितनापुर में पांडव सानंद रह रहे थे कि उसका विरोध कौरवसे हुआ | युधिष्ठ शांतिप्रिय थे । उन्होंने इस विशेषको भेटनेका पश्च पाण्डव । उद्योग किया । परन्तु यह गृहामि शांत न हुई। कौरवोंने दुष्टताको ग्रहण किया। उन्होंने पांडवको लाखा मारमें जला डालनेका उद्योग किया, परन्तु वे सुरंग के रास्ते से भाग निकले । हस्तिनापुर से चलकर पांचों पांडव और कुन्ती दक्षिण भारसमें पहुंचे। वर्षों उधर ही विचरते रहे और उस ओरके राजाओंसे उन्होंने विवाह सम्बन्ध किये । | १- हरि० सर्ग ६३, कोटिशिका दक्षिण भारत में ही कहीं अवस्थित थी । श्रीमान् ब्र० सीतलप्रसादजीने इसे कलिंगदेशमें कहीं चीन्हा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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