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भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डव। [८१ उपरान्त एक मास पहले से उन्होंने योगोंका निरोध किया । मौर भघातिया कर्मों का नाश कर वे मुक्त होगये । उस समय समुद्र. विजय, शंबू, प्रद्युम्न आदि भी गिरनारसे मोक्ष गये थे। इस पुनीत घटनाके हर्षमें देवोंने भानन्दोत्सव मनाया था। इन्द्रने गिरिनार पर एक सिद्धशिला निर्मापी, जिसपर भगवान् नेमिनाथके समस्त लक्षण अंकित कर दिये।
इस प्रकार भगवानको मुक्त हुमा जानकर पांचों पाण्डव शत्रुजय पर्वतपर जा विराजे। वहां उन्होंने गहन ध्यान माड़ा । उस ध्यान अवस्थामें उनपर कौरव वंशके युघरोवन नामक दुष्टने घोर उपसर्ग किया। उसने लोहे के कड़े, मुकुट आदि बनाये और उन्हें अमिमें ताकर पांडवों को पहिना दिये, जिससे उनके शरीर अवयव बुरी तरह जल गये । परन्तु साधु पाण्डवों ने इस उपसर्गको सम मावोंसे सहन किया । युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन उसी. समय मुक्त हो सिद्ध परमात्मा हुये। मुनिराज नकुल और सहदेव भाइयों के मोहमें किंचित् फंस गये । इसलिए वे मरकर सर्वार्थसिद्धि विमानमें महिमिन्द्र हुये। बलमद भी ब्रह्मस्वर्ग देव हुये।"
उपरान्त यादवोंमें केवल जरत्कुमार शेष रहे गौर नहाँसे यादवोंकी वंशपरम्परा जीवित रही । मरकुमार कनिदेश जाकर राज्य करने लगे और वहीं उनकी सन्तान राज्याधिकारी हुई थी।
१-हरि० सर्ग ६५।
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