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६४] संक्षिप्त जैन इतिहास। स्पष्ट है कि उसके समयमें जैनधर्म तामिल देशमें गहरी जड़ पकड़े हुये था। वहां जैनियोंके विहारों और मठोंका वर्णन पदपदपर मिलता है। जनतामें जैन मान्यताओंका घर कर गना उसकी बहु प्राचीनताकी दलील है।' सीलप्पदिकारम्' भी इसी मतका पोषक है।' ____ उपलब्ध पुरातत्व भी हमारे इस मतकी पुष्टि करता है कि जैनधर्म दक्षिण भारतमें एक अत्यंत प्राचीनकालमें पहुंच गया था। जैन ग्रन्थ 'करकंडु चरित' में जिन तेरापुर धाराशिव आदि स्थानोकी जैन गुफाओं और मूर्तियोंका वर्णन है, वे आज भी अपने प्राचीन रूपमें मिलती हैं। उनकी स्थापनाका समय म० पार्श्वनाथ ( ई० पृ० ८ वीं शताब्दि) का निकटवर्ती है। इसलिये उन गुफाओं और मूर्तियों का अस्तित्व दक्षिण भारतमें जैनधर्मका अस्तित्व तत्कालीन सिद्ध करता है।
इसके अतिरिक्त मदुरा और रामनद जिलोंमें ब्राह्मी लिपिके प्राचीन शिलालेख मिलते हैं। इनका समय ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दि अनुमान किया गया है । इनके पास ही जैन मंदिरोंके अवशेष और तीर्थकरोंकी खंडित मूर्तियां मिली हैं। इसी लिये एवं इनमें अकित शब्दोंके आधारसे विद्वानों ने इन्हें जैनोंका प्रगट किया है। इसके माने यह होते हैं कि उस समयमें जैनधर्म वहांपर अच्छी तरह प्रचलित होगया था । अलगरमलै ( मदुरा) एक प्राचीन जैन
१-बुस्ट०, पृ० ३ व ६८१ । २-साईजे०, पृ० ९३-९४ । ३-अमेरिई०, भा० १६ प्र० सं० १-२ और करकण्डु चारेय (कारंजा) भूमिका । ४-साइजै०, भा० १ पृ. ३३-३४।
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