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भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डव। [७७. एक सर्वज्ञ-सर्वदर्शी तीर्थकरके रूसमें भगवान अरिष्टनेमिने
नानादेशोंमें विहार करके धर्म-प्रचार किया। भगवानका हरिवंश पुराण' में लिखा है कि भगवान्. विहार। अरिष्टनेमिने क्रमसे सोठ ( सु-राष्ट्र ),
लाटोरु, शूरसेन, पाटचा, कुरुजांगल, पांचाळ, कुशाग्र, मगध अनन, अंग, बंग कलिंग भादि देशोंमें विहार किया था।
इम विहार में भगवान : शुभागमन मलयदेशके भदिलपुरमें" भी हुआ। वहांक राजा पौंडूने भक्तिपूर्वक भगमनकी वन्दना की। वहीं सेठ सुदृष्टिके यहां कृष्णकी रानी देवकीके छ युगलिया पुत्र रहते थे। वे भी भगवानकी वन्दना करने आये और धर्मोपदेश सुनकर मुनि हो भगवान के साथ होलिये। आगे भगवान् का विहार पल्लवदेशमें भी हुमा । उस समय दक्षिण मथुरामें पांचों पाण्डव रह रहे थे। उन्होंने जब यह सुना कि भगवान अरिष्टनेमि वहां माये हैं तो उन्होंने जाकर भगवामकी वन्दना की। इसप्रकार भगवानने दक्षिणके देशोंमें विहार किया। पल्लवदेशमें वे कईवार पहुचे थे। उनके इसप्रकार धर्मप्रचार कानेसे दक्षिण भारतमें जैनधर्मकी प्रगति खुब हुई थी।
उधर अपने चचेरे भाई मरिष्टनेमिके मुनि हो जानेके पश्चात् कृष्ण लोटकर द्वारिका गये और वहां सानन्द राज्य करने लगे।
१-पृष्ठ १५४ । २-हरि• पृ० ५९४। ३-हरि० सर्ग ६३ श्लोक ७६-७७।
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