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भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डव । [ ६९
धीरे-धीरे इस वंशके राजाओंने अपना अधिकार मगध बर जमा लिया और वहाँ इस वंशमें राजा सुमित्रके सुपुत्र तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ जन्मे थे । मुनिसुव्रतनाथ स्वपुत्र सुव्रतको राज्य देकर धर्मचक्रवर्ती हुये थे । सुव्रत के उपरांत इस वंशमें अनेक राजा हुये और वे नाना देशोंमें फैल गये। उनमें राजा वसुका पुत्र बृहदध्वज मथुरा में आकर राज्याधिकारी हुआ और उसकी सन्तान वहां सानंद राज्य करती रही । तीर्थङ्कर नमिके तीर्थमें मधुराके हरिवंशी राजाओं यदु नामका एक तेजस्वी राना हुआ ।
यह राजा इतना प्रभावशाली था कि आगे हरिवंश इसीके नामकी अपेक्षा ' यादव वंश' के नामसे प्रसिद्ध होगया । राजा युदुके दो पोते शूर और सुवीर उसीकी तरह पराक्रमी हुये । सुवीर मथुराका राजा हुआ और शूरने कुशद्यदेशमें शौर्यपुर बसाकर वहां अपना राज्य स्थापित किया । अंधकवृष्णि आदि इनके अनेक पुत्र थे । सुवीरके पुत्र भोजकवृष्ण आदि थे ।
सुवीरने मधुराका राज्य उनको दिया और स्वयं सिंधुदेशमें सौवीरपुर बसाकर वहांका राजा हुआ । अंधकवृष्णिके दश पुत्र थे, अर्थात् समुद्र विजय, अक्षयोभय, स्विमित, सगर, हिमवन, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वासुदेव । इनकी दो बहिनें कुन्ती और मन्त्री थीं, जो पाण्डु और दमघोषको व्याहीं गई थीं ।
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कृष्ण वासुदेव और देवकीके पुत्र थे और नही उस समाप यादवोंमें प्रमुख राजा थे। पाण्डुराज हस्तिनापुरमें राज्य करते थे, और उनकी सन्तान पाण्डव नामसे प्रसिद्ध भी । कृष्णके भाई बलभद्र थे ।
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