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३२] संक्षित जैन इतिहास।
नारायण द्विपृष्ट । दूसरे नारायण द्विपृष्ट भगवान वासुपूज्यके समयमें हुये थे । यद्यपि उनका जन्म द्वारामती नगरीमें हुआ था, परन्तु उनके पूर्वभवका सम्बन्ध दक्षिण भारतसे अवश्य था। अपने पूर्वभवमें वह कनकपुरके राजा सुषेण थे । उनकी गुणमंजरी नामक नृत्यकारिणी सुंदरी और विद्वान थी । मलयदेशके विंध्यपुर नगरमें राजा विध्य. शक्ति राज्य करता था। उसने गुणमंजरीकी प्रसिद्धि सुनी और सुनते ही उसने सुषेणसे उसे मंगवा भेजा । और जब सुषेणने उसे राजीसे नहीं दिया तो वह सुषेणको युद्ध में परास्त करके जीत लाया। सुषेण मुनि होगया और आयु पूरी कर स्वर्गमें देव हुआ।
वहांसे चयकर वही नारायण द्विपृष्ट हुआ। विंध्यशक्तिसे उसका पूर्व वैर था-उसे वह भुला नहीं। विध्यशक्तिका जीव संसारमें रूल कर भोगवर्द्धनपुरके राजाके यहां तारक नामक श्यामवर्ण पुत्र हुमा । तारक राजा होनेपर एक प्रभावशाली शासक और विजेता सिद्ध हुआ। तारकने द्विपृष्टसे भी कर मांगा, परन्तु द्विपृष्टने इसे अपना अपमान समझा । इसी बातको लेकर दोनोंमें घमासान युद्ध हुआ, जिसमें तारकको आने प्राणोंसे हाथ धोने पड़े। द्विपृष्टने तीन खंड पृथ्वीका स्वामित्व प्राप्त किया । दिग्विजय करके उन्होंने प्रतीप नामक पर्वतपर श्री वासुपूज्य स्वामीकी वन्दना की। द्विपृष्ट यद्यपि बलवान राजा था, परन्तु वह इन्द्रियोंका गुलाम था। इसी लिये शास्त्रोंमें कहा गया है कि वह मरकर नरकका पात्र हुआ।
१-उपु० ५८६१-७७।
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