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दक्षिण भारतका ऐतिहासिक काल। [५९ ने स्पष्ट लिखा था कि प्राचीनकालमें दक्षिण भारतकी राजनैतिक घटनाओं का सम्बन्धित विवरण लिखा ही नहीं जा सकता। भाज भी यह कथन एक हदतक ठीक है।
परन्तु इस दरमियानमें जो ऐतिहासिक खोज और अन्वेषण हुये हैं, उनके आधारसे दक्षिण भारतका एक क्रमबद्ध ऐतिहासिक विवरण ईस्वी प्रारम्भिक शताब्दियोंसे लिखा जा सकता है। किंतु वह समय दक्षिण भारतके इतिहासका भारम्भ-काल नहीं कहा जा शकता । भले ही ईस्वी पूर्व शताब्दियोंके दक्षिण भारतका क्रमबद्ध विवरण न मिले, परन्तु उसकी सम्यता और संस्कृतिके अस्तित्व मौर अभ्युत्थानका पता बहुत समय पहले तक चलता है। सिंधु उपत्ययकाका पुरातत्व और वहांकी सभ्यता द्राविड़ सभ्यतासे मिलती जुलती थी।' चन्द्रहल्लीका पुरातत्व इसका साक्षी है। सुमेरु जातीय लोगोंसे भी द्राविड़ोंका सादृश्य था। और यह सुमेरु लोग सिंधुसुवर्ण अथवा सिंधु सुवीर देशके मूल अधिवासी थे । सु-राष्ट्र या सौराष्ट्रसे ही जाकर वे मेसोपोटेमिया आदि देशोंमें बस गये थे। गुजरातके जैनी वणिक इस सु-वर्ण जातिके ही वंशज अनुमान किये जाते हैं। सिंधु, सुमेरु और द्राविड़-इन तीनों जातियों की सभ्यता
और संस्कृतिका सादृश्य उन्हें सम-सामायिक सिद्ध करता है। इसलिये द्राविड़ देश अर्थात् दक्षिण भारतका इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि सुमेरु जातिका है, बल्कि संभव तो यह
१-Ibid. २-मोद० भा० १ पृ० १०९। ३-विभा० भा. १८ अंक ५ पृ० ६३१।
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