Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 77
________________ ६.] संतिम जैन इतिहास। है कि वह उनसे भी प्राचीन हो क्योंकि सुमेरु लोगोंने भारतसे जाकर मेसोपोटेमियामें उपनिवेशकी नीव डाली थी। महाराष्ट्र, निजाम हैदराबाद और मद्रास प्रान्तमें ऐसे प्राचीन स्थान मिलते हैं जो प्राग् ऐतिहासिक कालके अनुमान किये गये हैं और वहांपर एक अत्यंत प्राचीन समयके शिलालेख भी उपलब्ध हुये हैं । यह इस बातके सबूत हैं कि दक्षिण भारतका इतिहास ईस्वी प्रारम्भिक शताब्दियोंसे बहुत पहले आरम्भ होता है। उधर प्राचीन साहित्य भी इसी बातका समर्थक है। तामिळ साहित्यके प्राचीन काव्य ‘मणिमेखले' और 'सीलप्पद्धिकारम् ' में एवं प्राचीन व्याकरण शास्त्र - थोलप्पकियम् ' में दक्षिण भारतके खूब ही उन्नत और समृद्धिशाली रूपमें दर्शन होते हैं और यह समय ईसासे बहुत पहलेका था । अतः दक्षिण भारतके इतिहासको उत्तर भारत जितना प्राचीन मानना ही ठीक है ! अब जरा यह देखिये कि दक्षिण भारतमें जैनधर्मका प्रवेश कब हुआ ? इस विषयमें जैनियोंका दक्षिण भारतमें जो मत है वह पहले ही लिखा जाचुका जैनधर्मका प्रवेश। है। उनका कथन है कि भगवान ऋष भदेवके समयमें ही जैनधर्म दक्षिण भारतमें पहुंच गया था। उधर हिन्दु पुराणोंकी साक्षीके आधारसे हम यह देख ही चुके हैं कि देवासुर संग्रामके समय अर्थात् उस प्राचीन कालमें जब भारतके मूल निवासियोंमें ब्राह्मण आर्य अपनी वैदिक -सभ्यताका प्रचार कर रहे थे, जैनधर्मका केन्द्र दक्षिण पथके नर्मदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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