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श्री राम लक्ष्मण और रावण । वैश्रवणके सुपुत्र श्रीदत्तके साथ करना निश्चित किया । उधर रानकुमार चन्द्रचूलके कान तक कुबेरदत्साके अनुपम रूप-सौन्दर्य की वार्ता पहुंची। वह दुराचारी तो था ही-उसने कुबेरदचाको अपने भाधीन करनेके लिये कमर कस ली । राजकुमारका यह अन्याय देख कर वैश्य समुदाय इकट्ठा होकर राजदरबारमें पहुंचा और उन्होंने इस अत्याचारकी शिकायत महाराज प्रजापतिसे की।।
महाराज प्रजापति अपने पुत्रसे पहले ही अप्रसन्न थे। इस समाचारको सुनने ही वह आग-बबूला होगये। उन्होंने न्यावदण्डको हाथमें लिया और कोतवालको चंद्रचूल तथा उसके मित्र विजयको प्राणदण्ड देनेकी आज्ञा दी । राजाके इस निष्पक्ष न्याय और कठोर दण्डकी चरचा पुरवासियोंमें हुई। बुड्ढे मंत्रीका पुत्रमोह जागा । वह नगरवासियोंको लेकर राजाकी सेवामें उपस्थित हुआ।
सबने राजासे प्रार्थना की कि वह अपनी कठोर माशा लोग '-राज्यका एक मात्र उत्तराधिकारी चंद्रचूल है, उसको प्राणदान दिया जाय ।' किन्तु राजाने यह कहकर उन लोगोंकी प्रार्थना मस्वीकृत कर दी कि 'माप लोग मुझे न्यायमार्गसे च्युत करना चाहते हैं, यह अनुचित है ।' सब चुप होगए । राजहठ गौर सो भी समुचित ! किसका साहस था नो मुंह खोलता।
इस परिस्थितिमें मंत्रीने अपनी बुद्धिसे काम लिया । उन्होंने दोनों युवकोंको प्राणदण्ड देनेका भार अपने ऊपर लिया। वह अपने पुत्र और राजकुमारको लेकर बनगिरि नामक पर्वतपर गए। वहांपर महाबल नामक मुनिराज विराजमान थे। तीनों ही मागंतुकोंने उन
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