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संक्षिप्त जैन इतिहास |
पूजित प्राचीन जैन शास्त्रों में कहे गये हैं ।' और यह हम पहले ही देख चुके हैं कि भारत के आदि निवासी असुर ही वैदिक मायसे प्राचीन मनुष्य हैं जो भारतवर्ष में रहते थे। सिंधु उपत्ययकाकी सभ्यता उन्हीं लोगों की सभ्यता थी और बहांकी धर्मउपासना जैन धर्मसे मिलती जुलती थी । किन्तु इस मान्यता के विरुद्ध भी एक विद्वत्समुदाब है, जिसमें अधिकांश भाग यूरोपीय विद्वानोंका है। वे लोग भारतको आर्योका जन्मस्थान नहीं मानते। उनका कहना है कि वैदिक आर्य भारत में मध्य ऐशियासे आये और उन्होंने यहोंके असुर दास आदि मूल निवासियोंको परास्त करके अपना अधिकार और संस्कार प्रचलित किया ।
इस घटना को वे लोग आजसे लगभग पांच है हजार वर्ष पहले घटित हुआ प्रगट करते हैं और इसीसे भारतीय इतिहासका प्रारम्भ करते हैं । किंतु सिन्धु उपत्ययकाका पुरातत्व भारतीय इतिहासका आरम्भ उक्त घटनासे दो-चार हजार वर्ष पहले प्रमा
१ - ' सुर असुर गरुल गहिया, चेहयरुक्खा जिणवगणं ॥ ६-१८॥॥॥ - समवायाङ्ग सूत्र |
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एस सुरासुर मणुसिंद, बंदिदं घोदघाइकम्ममलं ।
पणमामि वड्ढाणं, तित्थं धम्मस्स कत्तारं ॥ १९ ॥ "
कर्मान्तकुन्महावोरः
सिद्धार्थ कुळसंभवः ।
एते सुरासुरौघेण पूजिता विमलत्विषः ॥ ५ ॥
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प्रवचनसार ।
- देवशास्त्रगुरुपूजा |
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२- महिइं० पृ० ४ - २५.
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