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श्री राम लक्ष्मण और रावण। [३९ युद्धमें बचे हुये म्लेच्छ अपने प्राण लेकर विंध्याचलकी पहाड़ियोंमें जा छिपे और रहने लगे। यह अर्द्धवरवर देश मध्य एशियासे ऊपरका देश अनुमानित होता है। इस देशके राजाकी अध्यक्षतामें श्याममुख, कर्दमवर्ण आदि म्लेच्छ भारतमें भाये थे। इन म्लेच्छोंको मार भगाने में राम और लक्ष्मणने खासी वीरता दर्शाई थी। जनक उन रानकुमारोंपर मोहित हुये और उन्होंने अपनी राजकुमारियों का व्याह उनके साथ करना निश्चित कर लिया। स्वयंवर रचा मया
और उसमें भी राम और लक्ष्मणने अपना धनुकौशल प्रगट किया। सीताने रामके गलेमें वरमाला डाली । रामचन्द्रके साथ उनका व्याह हुमा । मन्य राजकुमारी लक्ष्मणको व्याही गई। दोनों राजकुमार सानन्द कालक्षेप करने लगे।
राम और लक्ष्मण राजा दशरथके बेटे थे। दशरथने वृद्धा
वस्थाको आया देखकर अपना आत्महित वनवास। करना विचारा, वह संसारसे विरक्त हुये।
ज्येष्ठ पुत्र रामचंद्र थे। उन्हें ही राजपद मिलना था। भरतकी माता कैकयीने भी यह बात सुनी । वह राजा दशरथके पास गई और उन्हें मुनि-दीक्षा लेनेसे रोकने लगी; परन्तु दशरथ महाराजके दिलपर वैराग्यका गाढा रंग चढ़ गया था। कैकयीकी बात उनको नहीं रुची। तब कैकयीने अपनी बात कही। एक दफा युद्धमें कैकयीकी वीरतापर प्रसन्न होकर दशरथने उसे एक वचन दिया था। कैकयीने वही वचन पूरा करनेके लिये दशरथसे प्रार्थना की। दशरथ मार्य राजत्वके मादर्श थे। उन्होंने रानीसे कहा,
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