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५०] संक्षिप्त जैन इतिहास ।
दक्षिण भारतकी अन्य राजकन्याओंसे उनका विवाह हुमा प्रगट है, परन्तु पल्लव देशकी राजकन्याओंको उन्होंने नहीं व्याहा था। शायद इसका कारण यही हो कि स्वयं नागकन्यायें पल्लवोंको व्याही गई थीं। यह सब बातें कुछ ऐसी हैं जो नाग लोगोंसे नागकुमारकी धनिष्टताको ध्वनित करती हैं। होसकता है कि वे नाग बंशज ही हों ।*
जो हो, युवा होनेपर नागकुमार अपने माता- पिलाके पास कनकपुर लौट आये और वहां सानंद रहने लगे। किन्तु उनके सौतेले भाई श्रीधरसे उनकी नहीं बनी। भाइयोंकी इस अनबनको देखकर राजा जयंघरने थोड़े समयके लिये नागकुमारको दुर हटा दिया । ज्येष्ठ पुत्र श्रीधर था और उसीका अधिकार राज्यपर था । नागकुमार मथुरा जापहुंचा । वहांके राजकुमारों-व्याल और महाव्यालसे उसकी मित्रता होगई । उनके साथ नागकुमार दिग्विजयको गया। और बहुतसे देशोंको जीता एवं राजकन्याओंको व्याहा।
महाव्यालके साथ नागकुमार दक्षिण भारतके किमिन्धमलय देशस्थ मेघपुरके राजा मेघवाहनके अतिथि हुए । राजा मेघवाहनकी पुत्रीको मृदंगवादनमें परास्त करके नागकुमारने उसे व्याहा। फिर मेघपुरसे नागकुमार तोयाबलीद्वीपको गये। वहांसे लौटकर वह पांख्य देश आये थे। पांड्य नरेश ने उनकी खूब भावभगत की थी।
* नाग लोगोंके विषय में जाननेके लिये हमारी 'भगवान पार्श्वनाथ' पुस्तक तथा 'णायकुमार चरित' (कारंजा)की भूमिका देखिये।
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