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४१] संक्षिप्त जैन इतिहास । पार की और वे दण्डकगिरिक पास जाकर ठहरे। वहां उन्होंने नगर बसाकर रहना निश्चित कर लिया था।
इसका अर्थ यह होता है कि वे वहां अपना उपनिवेश स्थापित करके रहना चाहते थे। किन्तु वहां एक अघटित घटना घट गई। लक्ष्मणके हाथसे धोखेमें खरदूषण के पुत्र शम्बुकी मृत्यु होगई । खरदुषणने राम-लक्ष्मणसे युद्ध ठान दिया। रावणका वह बहनोई था। उसने उसके पास भी सहायताके लिये समाचार भेज दिये । राम
और लक्ष्मण नर-पुंगव थे । वे इस आपत्तिको देखकर जरा भी भयभीत नहीं हुये। राम युद्धके लिये उद्यत हुये, परन्तु लक्ष्मणने उन्हें जाने नहीं दिया। वह स्वयं युद्ध लड़ने गये और कह गवे कि यदि मैं सिंहनाद करूं तो मेरी सहायताको भाइये । राम
और लक्ष्मण वीर पुरुष थे, उनका पुण्य भक्षय था। खरदुषणका शत्रु विराधित उनकी सहायता करनेके लिये स्वयं मा उपस्थित हुमा। खरदृषणका भाशा भरोसा लंकाका राजा रावण था। रावणने
तीनखंड पृथ्वीको जीतकर अपना पौरुष प्रगट रावण। किया था। वह बड़ा ही कर परन्तु पराक्रमी
था। उसने भनेक विद्यायें सिद्ध की थीं। वह राक्षस नामक विधाघरोंके राजवंशका अग्रणी था। अमुरसंगीत नगरके राजा मयकी पुत्री मन्दोदरी रावणकी पटरानी थी। रावणने दिग्विजयमें दक्षिणभारतके देशोंको भी अपने आधीन बनाया था। रावणके सहायक हैहय, टंक, किहिकन्ध, त्रिपुर, मलय, हेम, कोल मादि देशोंके राजा थे। रावण अपनी दिग्विजयमें विंध्याचलपर्वतसे
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