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संक्षिप्त जैन इतिहास |
इस कालमें बादि धर्म देशना थी । भगवानने काशी, अवंती, कुरुजांगल, कोशल, सुझ, पुंडू, चेदि, अंग, बंग, मगध, अंत्र, कलिंग, भद्र, पंचाल, मालव, दशार्ण, विदर्भ आदि देशोंमें विहार किया था । लोगोंको सन्मार्गपर लगाया था ! अन्ततः कैलास पर्वत पर जाकर भगवान बिराजमान हुये थे और वहींसे माघ कृष्णा चतुर्दशीको भगवान निर्वाणपदके अधिकारी हुये । भरत महाराजने उनके स्मारक में वहां उनकी स्वर्ण-प्रतिमा निर्मित कराई थी । *
दक्षिण भारतके प्रथम सभ्राट् बाहुबलि ।
भगवान ऋषभदेवके दूसरे पुत्र बाहुबलि थे । यह महा बलवान और अति सुंदर थे । इसीलिये इनको पहला कामदेव कहा गया है । भगवान ऋषभदेवने बाहुबलिको अश्मक - रम्यक अथवा सुरम्य देशका शासक नियुक्त किया था और वह पोदनपुर से प्रजाका पालन करते थे । अपने समयके अनुपम सुन्दर और श्रेष्ठ शासकको पाकर उनकी प्रजा व्यतीव संतुष्ट हुई थी। यही वजह है कि आज भी उनकी पवित्र स्मृति लोगों के हृदयों में सजीव है ।
दक्षिण भारत के लोग उन्हें 'गोमट्ट' अर्थात् 'कामदेव' नामसे स्मरण करते हैं और निस्सन्देह वह कामदेव थे । परन्तु कामदेव होते हुये भी बाहुबलि नीति और मर्यादा धर्मके आदर्श थे । साथ ही उनकी मनोवृत्ति स्वाधीन और न्यायानुमोदित थी । वह अन्याके प्रतिकार और कर्तव्य पालनके लिये मोह ममता और कायरता से
* विशेषके लिये ब्यादिपुराण व संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग देखो ।
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