________________
. २८ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
या दक्षिण पश्चिमोत्तर भाग में बताया गया है। किन्तु प्रश्न यह है कि क्या अजैन ग्रंथोंका पोदन या पौण्ड्य और अश्मकदेश जैनशास्त्रों का पोदनपुर और सुरम्यदेश है ? हमारे ख्यालसे उन्हें एक मानना युक्तिसंगत है ।
आदिपुराणानुसार सुरम्यदेशका अपरनाम यदि अश्मक - रम्यक माना जाय तो अश्मक देशको सुरम्य माना जासकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि अश्मका अपर नाम रम्यक या सुरम्य था अथवा यह भी संभव है कि उसके उपरान्त दो भाग अश्मक और रम्यक होगए हो। यह ष्ट ही है कि अश्मक और रम्यक प्रायः एक ही दक्षिणापथवर्ती प्रदेश था । 'हरिवंशपुराण' में अश्मकको दक्षिण देश ही लिखा है। "
जैन लेखकोंने भी अइपकको दक्षिणभारतका देश लिखा है। वराहमिहिर ने आंध्र के बाद अश्मकको गिना है। राजशेषरने भी 'काव्यमीमांसा' में अश्मकको दक्षिणदेश लिखा है। शाकटायनने साल्व (आंध्रों ) के बाद अश्मकका उल्लेख किया है। कौटिल्यने अश्मको हीरोंके लिये प्रख्यात और राष्ट्रिकोंके बाद लिखा है। विन्ध्याचलके परे प्राचीन दक्षिणापथ में हमें हीरोंकी प्रसिद्ध
५
१ - जैग • मा० २२ पृ० २११ ।
२ - हरि० सर्ग १९ श्लोक ७०-७१ ।
३ - वराहमिहिरसंहिता परि० १६० ११ ।
G. O. S., Vol. I, eh. XVH P. 9. १ - ( २|४|१०१ )
६ - अर्थशास्त्र, अधिकार २ प्रकरण २९ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com