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पौराणिक काल।
[१५ वह पोदनपुरसे चलकर भूताचल पर्वतपर एक तापसाश्रममें कुतप तपने लगा। मरुभूति मरकर मलयपर्वतके कुब्जकसल्लकी वनमें हाथी हुआ। वह वहां वेगवती नदीके किनारेपर रहता था। 'उत्तरपुराण' में स्पष्ट शब्दोंने पोदनपुरको दक्षिणभारतके सुरम्यदेश में अवस्थित लिखा है।' श्री वादिराजसरिने भी पोदनपुरको मुरम्पदेशमें शालिचावलोंके खेतोंसे भरपूर लिखा है। वहांसे भूताचल पर्वत अधिक दूर नहीं था। श्रीजिनसेनाचार्यने भूताचलके स्थानपर रामगिरि पर्वत लिखा है। अब यह देखना चाहिये कि पोदनपुरके निकटवर्ती उपरोक्त स्थान कहांपर थे ?
पहले ही भूताचळ या रामगिरि पर्वतको लीजिये । भी जिनसेनाचार्यने रामगिरिका उल्लेख भूताचलके लिये किया है, इसलिये यह अनुमान करना ठीक है कि रामगिरि और भूताचा एक ही पर्वतके मिन्न नाम थे, अथवा एक पर्वतकी दो शिखिरोंके नाम थे। रामगिरि नागपुर डिवीजनका रामटेक है, जो भाज भी एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। श्री उग्रादित्याचार्यने रामगिरिके जैब मंदिरमें ही बैठकर ग्रंथ रचना की थी। उन्होंने उसे त्रिकलिङ्ग देशमें भवस्थित १-"जबूविभूषणे द्वीपे भरते दक्षिणे महान् ।
सुरम्यो विषयस्तत्र विस्तीर्ण पोदनं पुरं ॥"
२-पार्श्वनाथचरित् प्रथम सर्ग श्लोक ३७-३८, ४८ व सर्ग २ श्लोक ६५
३-पार्वाभ्युदयकाव्य-'यो निर्मत्सै'-इत्यादि पद्य देखो। ४-जैन सिद्धांत भास्कर (जैसिमा०) मा० ३ पृ. १३-१४ ।
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