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पौराणिक काल। हुई। वह पोदनपुर गये। उन्होंने बड़े प्रेमसे राजर्षि बाहुबलिको वन्दना की। बाहुबलि निराकुल हुए। उन्होंने अपने ध्यानको और भी विशुद्ध बनाया और घातिया कर्मों का नाश कर दिया। वह केवलज्ञानी होगए । देवोंने उत्सव मनाया। भरतमहाराजने उनके केवलज्ञानकी पूजा की। बाहुबलिने चातक श्रोताओंको धर्मामृत पान कराया। और वह सारे देशमें विहार करने लगे । भातमहाराजने उनकी पवित्र स्मृतिमें पोदनपुरमें एक स्वर्णमूर्ति उन्हींके भाकारकी स्थापित कराई; जो वहाँ एक लम्बे समय तक विद्यमान रही।
विहार करते हुए राजर्षि बाहुबलि कैलाश पर्वतपर पहुंचे और वहाँपर उन्होंने पूर्ण ध्यानका आश्रय लिया, जिसके परिणाम स्वरूप वह निर्वाणके अधिकारी हुए।
विद्वानोंका अनुमान है कि बाहुबलि ही दक्षिणमारतके पहले सम्राट् धर्मामृत वर्षा करके मोक्षकाम करनेवाले पहले मनुष्य थे।' हमारे विचारसे यह मान्यता है भी ठीक; क्योंकि बाहुबलिका राज्यप्रदेश अश्नकरम्यक और पोदनपुर दक्षिणभारतमें ही अबस्थित प्रमाणित होते हैं। यद्यपि कोई २ विद्वान् पोदनपुरको भारतकी पश्चिमोत्तर सीमा भवस्थित और प्रायः तक्षशिला ही अनुमान करते हैं; परन्तु उनकी यह मान्यता युक्तिपुरस्सर नहीं है। निम्न पंक्तियों पाठकगण पोदनपुरको प्राचीन दक्षिणापथमें अवस्थित " सिद्ध हुआ पढ़ेंगे।
जैन संघमें पोदनपुरका कथन अनेक स्यलोंपर भाया है और १-पद्मपुराण चर्य पर्व को• ६७-७७.
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