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संक्षिप्त जैन इतिहास। उनका उल्लेख मागेके पृष्ठोंने पाठकगण यथास्थान पढ़ेंगे। सबसे पहले इसका उल्लेख बाहुबलिजीके सम्बन्धमें हुमा मिलता है। 'महापुराण' में लिखा है कि भरतके इतने पोदनपुरको शालिचावल और गन्नेके खेतोंसे लहलहाता पाया था और वह · संख्यात' दिनोंमें ही वहां पहुंच गया था। 'हरिवंशपुराण' में लिखा है कि दुत अयोध्यासे पश्चिम दिशाको चलकर पोदनपुर पहुंचा था।
इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि पोदनपुर अयोध्यासे बहुत ज्यादा दूर नहीं था और न वह अयोध्यासे उत्तर दिशामें था; जैसे कि तक्षशिला होनी चाहिये। उसके आसपास शालिचावल और गन्ना होते थे। तक्षशिलामें यह चीजें शायद ही मिलती हों। साथ ही तक्षशिलामें एक बृहत्काय बाहुबलि मूर्तिके मस्तित्वका पता नहीं चलता, जोकि पोदनपुरका खास स्मारक था।
बाहुबलिके अतिरिक्त पोदनपुरका खास उल्लेख भगवान पार्श्वनाथके पूर्वभव चरित्रमें मिलता है। भगवान पार्श्वनाथ अपने पहले भवमें पोदनपुरके राजा अरविन्दके पुरोहित विश्वभूतिके सुपुत्र मरुभूति थे। उनके भाई कमठ थे । कमठ दुष्ट प्रकृतिका मनुष्य था । उसने मरुभूनिकी स्त्रीसे व्यभिचार सेवन किया, जिसका दण्ड उसे देशनिकाला मिला।
१-'शालिवप्रेषु'-'शालीक्षुगीरकक्षेत्रवृतः' ( ३६ पर्व)
"क्रमेण देशान् सिंधूश्च देशसंधीच सोऽतियन् । प्रापत् संख्यातरात्रैस्तत्पुरं पोदनाक्षयम् ।" २-हरिवंशपुराण, सर्ग ११ श्लोक ७९ ।
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