Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ (११) श्रुतज्ञान से जो जानते हैं शुद्ध केवल आतमा । श्रुतकेवली उनको कहें ऋषिगण प्रकाशक लोक के ॥ ९ ॥ जो सर्वश्रुत को जानते उनको कहें श्रुतकेतवली । सब ज्ञान ही है आतमा बस इसलिए श्रुतकेवली ॥ १० ॥ व्यवहारनय । शुद्धनय भूतार्थ है अभूतार्थ है भूतार्थ की ही शरण गह यह आतमा सम्यक् लहे ॥ ११ ॥ परमभाव को जो प्राप्त हैं वे शुद्धनय ज्ञातव्य हैं । जो रहें अपरमभाव में व्यवहार से चिदचिदास्रव पाप-पुण्य शिव बंध तत्त्वार्थ ये भूतार्थ से जाने हुए उपदिष्ट हैं ॥ १२ ॥ संवर निर्जरा । सम्यक्त्व हैं ॥ १३ ॥

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