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बंध अधिकार
ज्यों तेल मर्दन कर पुरुष रेणु बहुल स्थान में । व्यायाम करता शस्त्र से बहुविध बहुत उत्साह से ||२३७॥
तरु ताड़ कदली बाँस आदिक वनस्पति छेदन करे । सचित्त और अचित्त द्रव्यों का बहुत भेदन करे ||२३८ ॥
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बहुविध बहुत उपकरण से उपघात करते पुरुष को परमार्थ से चिन्तन करो रजबंध किस कारण हुआ ॥२३९॥