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(९१)
जो कर्मफल को वेदते निजरूप माने करमफल । हैं बाँधते वे जीव दुख के बीज वसुविध करम को ॥३८७॥
जो कर्मफल को वेदते माने करमफल मैं किया । हैं बाँधते वे जीव दुख के बीज वसुविध करम को ॥ ३८८ ॥
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॥३८९॥
जो कर्मफल को वेदते हों सुखी अथवा दुखी हों । हैं बाँधते वे जीव दुख के बीज वसुविध करम को शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि शास्त्र कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही शास्त्र अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥३९०॥
शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही शब्द अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥३९१ ॥