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अध्यवसान ज्ञान नहीं है क्योंकि वे अचेतन जिन कहे । इसलिए अध्यवसान अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥४०२॥ नित्य जाने जीव बस इसलिए ज्ञायकभाव है । है ज्ञान अव्यतिरिक्त ज्ञायकभाव से यह जानना ॥४०३॥ ज्ञान ही समदृष्टि संयम सूत्र पूर्वगतांग भी । सद्धर्म और अधर्म दीक्षा ज्ञान हैं - यह बुध कहें ॥४०४॥ आहार पुद्गलमयी है बस इसलिए है मूर्तिक । ना अहारक इसलिए ही यह अमूर्तिक आतमा ॥४०५॥ परद्रव्य का ना ग्रहण हो ना त्याग हो इस जीव के । क्योंकि प्रायोगिक तथा वैनसिक स्वयं गुण जीव के ॥४०६॥