Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 82
________________ (८१) अब्रह्मचारी नहीं कोई हमारे उपदेश में ।। क्योंकि ऐसा कहा है कि कर्म चाहे कर्म को ॥३३७॥ जो मारता है अन्य को या मारा जावे अन्य से । परघात नामक कर्म की ही प्रकृति का यह काम है ॥३३८॥ परघात करता नहीं कोई हमारे उपदेश में । क्योंकि ऐसा कहा है कि कर्म मारे कर्म को ॥३३९॥ सांख्य के उपदेश सम जो श्रमण प्रतिपादन करें ।। कर्ता प्रकृति उनके यहाँ पर है अकारक आतमा ॥३४०॥ या मानते हो यह कि मेरा आतमा निज को करे । तो यह तुम्हारा मानना मिथ्यास्वभावी जानना ॥३४१॥ CA

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