Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 81
________________ (८०) कर्म अज्ञानी करे अर कर्म ही ज्ञानी करे । जिय को सुलावे कर्म ही अर कर्म ही जागृत करे ॥३३२॥ कर्म करते सुखी एवं दुखी करते कर्म ही । मिथ्यात्वमय कर्महि करे अर असंयमी भी कर्म ही ॥३३३॥ कर्म ही जिय भ्रमाते हैं उर्ध्व-अध-तिरलोक में । जो कुछ जगत में शुभ-अशुभ वह कर्म ही करते रहें ॥३३४॥ कर्म करते कर्म देते कर्म हरते हैं सदा । यह सत्य है तो सिद्ध होंगे अकारक सब आतमा ॥३३५॥ नरवेद है महिलाभिलाषी नार चाहे पुरुष को । परम्परा आचार्यों से बात यह श्रुतपूर्व है ॥३३६॥

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