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जो करे, भोगे नहीं वह; सिद्धान्त यह जिस जीव का । वह जीव मिथ्यादृष्टि आर्हतमत विरोधी जानना ॥३४७॥
कोई करे कोई भरे यह मान्यता जिस जीव की । वह जीव मिथ्यादृष्टि आर्हतमत विरोधी जानना ॥ ३४८ ॥ ज्यों शिल्पि कर्म करे परन्तु कर्ममय वह ना बने । त्यों जीव कर्म करे परन्तु कर्ममय वह ना बने ॥ ३४९ ॥ ज्यों शिल्पि करणों से करे पर करणमय वह ना बने त्यों जीव करणों से करे पर करणमय वह ना बने ज्यों शिल्पि करणों को ग्रहे पर करणमय वह ना बने त्यों जीव करणों को ग्रहे पर करणमय वह ना बने ॥ ३५१ ॥
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॥ ३५० ॥
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