Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 85
________________ (८४) ज्यों शिल्पि भोगे कर्मफल तन्मय परन्तु होय ना । त्यों जीव भोगे कर्मफल तन्मय परन्तु होय ना ॥३५२॥ संक्षेप में व्यवहार का यह कथन दर्शाया गया । अब सुनो परिणाम विषयक कथन जो परमार्थ का ॥३५३।। शिल्पी करे जो चेष्टा उससे अनन्य रहे सदा । जीव भी जो करे वह उससे अनन्य रहे सदा ॥३५४॥ चेष्टा में मगन शिल्पी नित्य ज्यों दुःख भोगता । यह चेष्टा रत जीव भी त्यों नित्य ही दुःख भोगता ॥३५५।। ज्यों कलई नहीं है अन्य की यह कलई तो बस कलई है । ज्ञायक नहीं त्यों अन्य का ज्ञायक तो बस ज्ञायक ही है ॥३५६॥

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