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ज्ञान-दर्शन-चरित ना किंचित् अचेतन कर्म में । इसलिए यह आतमा क्या कर सके उस कर्म में ॥३६७॥ ज्ञान-दर्शन-चरित ना किंचित् अचेतन काय में । इसलिए यह आतमा क्या कर सके उस काय में ॥३६८॥ सद्ज्ञान का सम्यक्त्व का उपघात चारित्र का कहा । अन्य पुदगल द्रव्य का ना घात किंचित् भी कहा ॥३६९॥ जीव के जो गुण कहे वे हैं नहीं परद्रव्य में । बस इसलिए सदृष्टि को है राग विषयों में नहीं ॥३७०॥ अनन्य हैं परिणाम जिय के राग-द्वेष-विमोह ये । बस इसलिए शब्दादि विषयों में नहीं रागादि ये ॥३७१॥