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गुणोत्पादन द्रव्य का कोई अन्य द्रव्य नहीं करे । क्योंकि सब ही द्रव्य निज-निज भाव से उत्पन्न हों ॥ ३७२ ॥
॥ ३७४॥
स्तवन निन्दा रूप परिणत पुद्गलों को श्रवण कर । मुझ को कहे यह मान तोष-रु - रोष अज्ञानी करें ||३७३ ॥ शब्दत्व में परिणमित पुद्गल द्रव्य का गुण अन्य है । इसलिए तुम से ना कहा तुष- रुष्ट होते अबुध क्यों ? शुभ या अशुभ ये शब्द तुझसे ना कहें कि हमें सुन अर आतमा भी कर्णगत शब्दों के पीछे न भगे शुभ या अशुभ यह रूप तुझ से ना कहे कि हमें लख यह आतमा भी चक्षुगत वर्णों के पीछे ना भगे ॥३७६ ॥
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॥ ३७५ ।।
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