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'मेरे नहीं ये' - जानकर तत्वज्ञ ऐसा मानते । है अज्ञता कर्तृत्वबुद्धि लोक एवं श्रमण की ॥३२७॥ मिथ्यात्व नामक प्रकृति मिथ्यात्वी करे यदि जीव को । फिर तो अचेतन प्रकृति ही कर्तापने को प्राप्त हो ॥३२८॥ अथवा करे यह जीव पुद्गल दरव के मिथ्यात्व को । मिथ्यात्वमय पुद्गल दरव ही सिद्ध होगा जीव ना ॥३२९॥ यदि जीव प्रकृति उभय मिल मिथ्यात्वमय पुद्गल करे । फल भोगना होगा उभय को उभयकृत मिथ्यात्व का ॥३३०॥ यदि जीव प्रकृति ना करें मिथ्यात्वमय पुद्गल दरव । मिथ्यात्वमय पुद्गल सहज, क्या नहीं यह मिथ्या कहो ? ॥३३१॥