Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 76
________________ सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार है जगत में कटकादि गहनों से सुवर्ण अनन्य ज्यों । जिन गुणों में जो द्रव्य उपजे उनसे जान अनन्य त्यों ॥३०८॥ जीव और अजीव के परिणाम जो जिनवर कहे। वे जीव और अजीव जानों अनन्य उन परिणाम से ॥३०९॥ ना करे पैदा किसी को बस इसलिए कारण नहीं । किसी से ना हो अतः यह आतमा कारज नहीं ॥३१०॥ कर्म आश्रय होय कर्ता कर्ता आश्रय कर्म भी । यह नियम अन्यप्रकार से सिद्धि न कर्ता-कर्म की ॥३११॥

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