________________
(७३)
अपराध चौर्यादिक करें जो पुरुष वे शंकित रहें । कि चोर है यह जानकर कोई मुझे ना बाँध ले ॥३०१ ॥
अपराध जो करता नहीं निःशंक जनपद में रहे । बंध जाऊँगा ऐसी कभी चिन्ता न उसके चित रहे ||३०२ || अपराधि जिय 'मैं बधूंगा' इसतरह नित शंकित रहे । पर निरपराधी आतमा भयरहित है निःशंक है साधित अराधित राध अर संसिद्धि सिद्धि एक है बस राध से जो रहित है वह आतमा अपराध है ||३०४॥
||३०३ ॥
।
निरपराध है जो आतमा वह आतमा निःशंक है । यह जानता आराधना में रत रहे ॥ ३०५ ॥
'मैं शुद्ध हूँ
-