Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ (६८) ना स्वयं करता मोह एवं राग-द्वेष-कषाय को । इसलिए ज्ञानी जीव कर्ता नहीं है रागादि का ॥२८०॥ राग-द्वेष-कषाय कर्मों के उदय में भाव जो । उनरूप परिणत जीव फिर रागादि का बंधन करे ॥२८१।। राग-द्वेष-कषाय कर्मों के उदय में भाव जो । उनरूप परिणत आतमा रागादि का बंधन करे ॥२८२॥ है द्विविध अप्रतिक्रमण एवं द्विविध है अत्याग भी । इसलिए जिनदेव ने अकारक कहा है आतमा ॥२८३॥ अत्याग अप्रतिक्रमण दोनों द्विविध हैं द्रवभाव से । इसलिए जिनदेव ने अकारक कहा है आतमा ॥२८४॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98