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ये और इनसे अन्य अध्यवसान जिनके हैं नहीं । वे मुनीजन शुभ-अशुभ कर्मों से न कबहूँ लिप्त हों ॥२७०॥ व्यवसाय बुद्धी मती अध्यवसान अर विज्ञान भी । एकार्थवाचक हैं सभी ये भाव चित परिणाम भी ॥२७१।। इस तरह ही परमार्थ से कर नास्ति इस व्यवहार की । निश्चयनयाश्रित श्रमणजन प्राप्ती करें निर्वाण की ॥२७२।। व्रत-समिति-गुप्ती-शील-तप आदिक सभी जिनवरकथित । करते हुए भी अभव्यजन अज्ञानि मिथ्यादृष्टि हैं ॥२७३॥ मोक्ष के श्रद्धान बिन सब शास्त्र पढ़कर भी अभवि । को पाठ गुण करता नहीं है ज्ञान के श्रद्धान बिन ॥२७४।।