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द्रवभाव से अत्याग अप्रतिक्रमण होवें जबतलक । तबतलक यह आतमा कर्ता रहे यह जानना ॥ २८५ ॥
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अधः कर्मक आदि जो पुद्गल दरब के दोष हैं । परद्रव्य के गुणरूप उनको ज्ञानिजन कैसे करें ? ॥२८६ ॥
उद्देशिक अधः कर्म जो पुद्गल दरबमय अचेतन । कहे जाते वे सदा मेरे किये किस भाँति हों ? ॥ २८७ ॥