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सर्व भावों के प्रति सदृष्टि हैं असंमूढ़ हैं । अमूढदृष्टी समकिती वे आतमा ही जानना ॥२३२।। जो सिद्धभक्ति युक्त हैं सब धर्म का गोपन करें । वे आतमा गोपनकरी सदृष्टि हैं यह जानना ॥२३३।। उन्मार्गगत निजभाव को लावें स्वयं सन्मार्ग में । वे आतमा थितिकरण सम्यग्दृष्टि हैं यह जानना ॥२३४॥ मुक्तिमगगत साधुत्रय प्रति रखें वत्सल भाव जो । वे आतमा वत्सली सम्यग्दृष्टि हैं यह जानना ॥२३५।। सद्ज्ञानरथ आरूढ़ हो जो भ्रमे मनरथ मार्ग में । वे प्रभावक जिनमार्ग के सदृष्टि उनको जानना ॥२३६।।