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चिकनाई ही रजबंध का कारण कहा जिनराज ने । पर काय चेष्टादिक नहीं यह जान लो परमार्थ से ॥२४५॥ बहुभाँति चेष्टारत तथा रागादि ना करते हुए । बस करमरज से लिप्त होते नहीं जग में विज्ञजन ॥२४६।। मैं मारता हूँ अन्य को या मुझे मारें अन्यजन । यह मान्यता अज्ञान है जिनवर कहें हे भव्यजन ! ॥२४७॥ निज आयु क्षय से मरण हो यह बात जिनवर ने कही । तुम मार कैसे सकोगे जब आयु हर सकते नहीं? ॥२४८॥ निज आयुक्षय से मरण हो यह बात जिनवर ने कही । वे मरण कैसे करें तब जब आयु हर सकते नहीं ? ॥२४९॥