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परात्मवादी मूढजन निज आतमा जाने नहीं । अध्यवसान को आतम कहें या कर्म को आतम कहें ॥ ३९ ॥ अध्यवसानगत जो तीव्रता या मंदता वह जीव है। पर अन्य कोई यह कहे नोकर्म ही बस जीव है ।।४० ।। मन्द अथवा तीव्रतम जो कर्म का अनुभाग है । वह जीव है या कर्म का जो उदय है वह जीव है॥४१॥ द्रव कर्म का अर जीव का सम्मिलन ही बस जीव है । अथवा कहे कोइ करम का संयोग ही बस जीव है ॥ ४२ ।। बस इस तरह दुर्बुद्धिजन परवस्तु को आतम कहें । परमार्थवादी वे नहीं परमार्थवादी यह कहें ॥ ४३ ।।