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मिथ्यात्व - अविरति - जोग- मोहाज्ञान और कषाय हैं । ये सभी जीवाजीव हैं ये सभी द्विविधप्रकार हैं ॥ ८७ ॥
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मिथ्यात्व आदि अजीव जो वे सभी पुद्गल कर्म हैं मिथ्यात्व आदि जीव हैं जो वे सभी उपयोग हैं
मोहयुत उपयोग के परिणाम तीन जानों उन्हें मिथ्यात्व अविरतभाव अर
अनादि से अज्ञान ये
॥ ८८ ॥
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॥ ८९ ॥
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यद्यपी उपयोग तो नित ही निरंजन शुद्ध है जिसरूप परिणत हो त्रिविध वह उसी का कर्ता बने ॥ ९० ॥
आतम करे जिस भाव को उस भाव का कर्ता बने । बस स्वयं ही उस समय पुद्गल कर्मभावे परिणमें ॥ ९१ ॥