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पर को करे निजरूप जो पररूप जो निज को करे । अज्ञानमय वह आतमा पर करम का कर्ता बने ॥ ९२ ॥ पररूप ना निज को करे पर को करे निज रूप ना । अकर्ता रहे पर करम का सद्ज्ञानमय वह आतमा ॥ ९३ ॥ त्रिविध यह उपयोग जब 'मैं क्रोध हूँ' इम परिणमें । तब जीव उस उपयोगमय परिणाम का कर्ता बने ॥ ९४ ॥ त्रिविध यह उपयोग जब 'मैं धर्म हूँ' इम परिणमें तब जीव उस उपयोगमय परिणाम का कर्ता बने ॥ ९५ ॥
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इसतरह यह मंदबुद्धि स्वयं के अज्ञान से । निज द्रव्य को पर करे अरु परद्रव्य को अपना करे ॥ ९६ ॥