Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ (५१) ज्यों प्रकरणगत चेष्टा करें पर प्राकरणिक नहीं बनें । त्यों ज्ञानिजन सेवन करें पर विषय के सेवक नहीं ॥१९७।। उदय कर्मों के विविध-विध सूत्र में जिनवर कहे । किन्तु वे मेरे नहीं मैं एक ज्ञायकभाव हूँ ॥१९८॥ पुद्गल करम है राग उसके उदय ये परिणाम हैं । किन्तु ये मेरे नहीं मैं एक ज्ञायकभाव हूँ ॥१९९॥ इसतरह ज्ञानी जानते ज्ञायकस्वाभावी आतमा । कर्मोदयों को छोड़ते निजतत्त्व को पहिचान कर ॥२००॥ अणुमात्र भी रागादि का सद्भाव है जिस जीव के । वह भले ही हो सर्व आगमधर न जाने जीव को ॥२०१।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98