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ज्यों प्रकरणगत चेष्टा करें पर प्राकरणिक नहीं बनें । त्यों ज्ञानिजन सेवन करें पर विषय के सेवक नहीं ॥१९७।। उदय कर्मों के विविध-विध सूत्र में जिनवर कहे । किन्तु वे मेरे नहीं मैं एक ज्ञायकभाव हूँ ॥१९८॥ पुद्गल करम है राग उसके उदय ये परिणाम हैं । किन्तु ये मेरे नहीं मैं एक ज्ञायकभाव हूँ ॥१९९॥ इसतरह ज्ञानी जानते ज्ञायकस्वाभावी आतमा । कर्मोदयों को छोड़ते निजतत्त्व को पहिचान कर ॥२००॥ अणुमात्र भी रागादि का सद्भाव है जिस जीव के । वह भले ही हो सर्व आगमधर न जाने जीव को ॥२०१।।