Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 53
________________ (५२) जो न जाने जीव को वे अजीव भी जाने नहीं । कैसे कहें सद्दृष्टि जीवाजीव जब जाने नहीं ? ॥ २०२ ॥ स्वानुभूतिगम्य है जो नियत थिर निज़भाव ही । अपद पद सब छोड़ ग्रह वह एक नित्यस्वभाव ही ॥२०३॥ मतिश्रुतावधिमन:पर्यय और केवलज्ञान भी । सब एक पद परमार्थ हैं पा इसे जन शिवपद लहें ॥ २०४॥ इस ज्ञानगुण के बिना जन प्राप्ती न शिवपद की करें । यदि चाहते हो मुक्त होना ज्ञान का आश्रय करो ॥ २०५ ॥ इस ज्ञान में ही रत रहो सन्तुष्ट नित इसमें रहो बस तृप्त भी इसमें रहो तो परममुख को प्राप्त हो । २०६ || ।

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