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गुण नाम के ये सभी प्रत्यय कर्म के कर्ता कहे । कर्ता रहा ना जीव ये गुणथान ही कर्ता रहे ॥११२॥ उपयोग जीव अनन्य ज्यों यदि त्यों हि क्रोध अनन्य हो । तो जीव और अजीव दोनों एक ही हो जायेंगे ॥११३॥ यदि जीव और अजीव दोनों एक हों तो इसतरह । का दोष प्रत्यय कर्म अर नोकर्म में भी आयगा ॥११४॥ क्रोधान्य है अर अन्य है उपयोगमय यह आतमा । तो कर्म अरु नोकर्म प्रत्यय अन्य होंगे क्यों नहीं? ॥११५॥ यदि स्वयं ही कर्मभाव से परिणत न हो ना बंधे ही । तो अपरिणामी सिद्ध होगा कर्ममय पुद्गल दरव ॥११६॥