Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 36
________________ (३५) अज्ञानमय हैं भाव इससे अज्ञ कर्ता कर्म का । बस ज्ञानमय हैं इसलिए ना विज्ञ कर्ता कर्म का ॥१२७॥ ज्ञानमय परिणाम से परिणाम हों सब ज्ञानमय । बस इसलिए सद्ज्ञानियों के भाव हों सद्ज्ञानमय ॥१२८।। अज्ञानमय परिणाम से परिणाम हों अज्ञानमय । बस इसलिए अज्ञानियों के भाव हों अज्ञानमय ॥१२९।। स्वर्णनिर्मित कुण्डलादि स्वर्णमय ही हों सदा । लोहनिर्मित कटक आदि लोहमय ही हों सदा ॥१३०।। इस ही तरह अज्ञानियों के भाव हों अज्ञानमय । इस ही तरह सब भाव हों सद्ज्ञानियों के ज्ञानमय ॥१३१।।

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