Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 46
________________ (४५) ज्ञान-दर्शन-चरित गुण जब जघनभाव से परिणमे । तब विविध पुद्गल कर्म से इसलोक में ज्ञानी बंधे ॥ १७२ ॥ सदृष्टियों के पूर्वबद्ध जो कर्मप्रत्यय सत्व में । उपयोग के अनुसार वे ही कर्म का बंधन करें ॥१७३॥ अनभोग्य हो उपभोग्य हों वे सभी प्रत्यय जिसतरह । ज्ञान- आवरणादि बसुविध कर्म बाँधे उसतरह ।। १७४ ।। बालबनिता की तरह वे सत्व में अनभोग्य हैं । पर तरुणवनिता की तरह उपभोग्य होकर बाँधते ॥ १७५ ॥ बस इसलिए सदृष्टियों को अबंधक जिन ने कहा । क्योंकि आस्वभाव बिन प्रत्यय न बंधन कर सके ॥ १७६ ॥

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