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ज्ञान-दर्शन-चरित गुण जब जघनभाव से परिणमे । तब विविध पुद्गल कर्म से इसलोक में ज्ञानी बंधे ॥ १७२ ॥
सदृष्टियों के पूर्वबद्ध जो कर्मप्रत्यय सत्व में । उपयोग के अनुसार वे ही कर्म का बंधन करें ॥१७३॥
अनभोग्य हो उपभोग्य हों वे सभी प्रत्यय जिसतरह । ज्ञान- आवरणादि बसुविध कर्म बाँधे उसतरह ।। १७४ ।।
बालबनिता की तरह वे सत्व में अनभोग्य हैं । पर तरुणवनिता की तरह उपभोग्य होकर बाँधते ॥ १७५ ॥
बस इसलिए सदृष्टियों को अबंधक जिन ने कहा । क्योंकि आस्वभाव बिन प्रत्यय न बंधन कर सके ॥ १७६ ॥