Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ (४८) ज्यों अग्नि से संतप्त सोना स्वर्णभाव नहीं तजे । त्यों कर्म से संतप्त ज्ञानी ज्ञानभाव नहीं तजे ॥१८४॥ जानता यह ज्ञानि पर अज्ञानतम आछन्न जो । वे आतमा जाने न माने राग को ही आतमा ॥१८५॥ जो जानता मैं शुद्ध हूँ वह शुद्धता को प्राप्त हो । जो जानता अविशुद्ध वह अविशुद्धता को प्राप्त हो ॥१८६॥ पुण्य एवं पाप से निज आतमा को रोककर । अन्य आशा से विरत हो ज्ञान-दर्शन में रहें ॥१८७॥ विरहित करम नोकरम से निज आत्म के एकत्व को । निज आतमा को स्वयं ध्या सर्व संग विमुक्त हो ॥१८८।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98