________________
(४६)
रागादि आस्वभाव जो सदृष्टियों के वे नहीं । इसलिए आस्रवभाव बिन प्रत्यय न हेतु बंध के ॥१७७॥ अष्टविध कर्मों के कारण चार प्रत्यय ही कहे । रागादि उनके हेतु हैं उनके बिना बंधन नहीं ॥१७८॥ जगजन ग्रसित आहार ज्यों जठराग्नि के संयोग से । परिणमित होता बसा में मज्जा रुधिर मांसादि में ॥१७९॥ शुद्धनय परिहीन ज्ञानी के बंधे जो पूर्व में । वे कर्म प्रत्यय ही जगत में बांधते हैं कर्म को ॥१८०॥