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आस्त्रव अधिकार मिथ्यात्व अविरत योग और कषाय चेतन-अचेतन । चितरूप जो हैं वे सभी चैतन्य के परिणाम हैं ॥१६४॥ ज्ञानावरण आदिक अचेतन कर्म के कारण बने । उनका भी तो कारण बने रागादि कारक जीव यह ॥१६५।। है नहीं आस्त्रव बंध क्योंकि आस्त्रवों का रोध है । सदृष्टि उनको जानता जो कर्म पूर्वनिबद्ध हैं ॥१६६॥