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(३३)
कर्मत्व में यदि वर्गणाएँ परिणमित होंगी नहीं । तो सिद्ध होगा सांख्यमत संसार की हो नास्ति ॥ ११७ ॥
यदि परिणमावे जीव पुद्गल दरव को कर्मत्व में । पर परिणमावे किसतरह वह अपरिणामी वस्तु को ॥११८॥
यदि स्वयं ही परिणमें वे पुद्गल दरव कर्मत्व में । मिथ्या रही यह बात उनको परिणमावें आत्मा ॥ ११८ ॥
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जड़कर्म परिणत जिसतरह पुद्गल दरव ही कर्म है जड़ज्ञान- आवरणादि परिणत ज्ञान-आवरणादि हैं ॥ १२० ॥ यदि स्वयं ही ना बंधे अर क्रोधादिमय परिणत न हो । तो अपरिणामी सिद्ध होगा जीव तेरे मत विषं ॥ १२१ ॥