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(३०)
निजकृत शुभाशुभभाव का कर्ता कहा है आतमा । वे भाव उसके कर्म हैं वेदक है उनका आतमा ॥ १०२ ॥
जब संक्रमण ना करे कोई द्रव्य पर-गुण-द्रव्य में । तब करे कैसे परिणमन इक द्रव्य पर-गुण-द्रव्य में ॥ १०३ ॥
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॥ १०४ ॥
कुछ भी करे ना जीव पुद्गल कर्म के गुण-द्रव्य में जब उभय का कर्ता नहीं तब किसतरह कर्ता कहें ? बंध का जो हेतु उस परिणाम को लख जीव में करम कीने जीव ने बस कह दिया उपचार से || १०५ ॥
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रण में लड़ें भट पर कहे जग युद्ध राजा ने किया बस उसतरह द्रवकर्म आतम ने किए व्यवहार से || १०६ ॥